Integrity Score 400
No Records Found
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क्या MGNREGA ग्रामीण लोगों के लिए जीवन रेखा है?
हाँ,
कोरोना काल के आर्थिक बदहाली में MGNREGA योजना के तहत 11 करोड़ लोगों को काम मिल पाया था. लेकिन इस साल केंद्र सरकार ने MGNREGA का बजट 34 प्रतिशत कम किया है. राज्यों के कोष ख़त्म हो रहे है जिस वजह से लोगों को अपने काम का पैसा भी नहीं मिल रहा है. पीपलस एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी के सर्वेक्षण के मुताबिक सिर्फ 1.8 प्रतिशत परिवारों को पुरे 100 दिन का काम मिला है.
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में MGNREGA की जांच पड़ताल करने के लिए हमने चित्रकूट जिले के कसहाई गांव की महिलाओं से बात की. दलित महिलाओं ने बताया कि MGNREGA में काम तो किया है लेकिन पैसे अभी तक नहीं मिले है. उन्होंने नाला सफाई का काम किया, तालाब में खंती खोदने का काम किया, जो बहुत मेहनत वाला था, गौशाला में जानवरों को गोबर-चारा देने का काम भी किया। इन सब काम के पैसे अभी तक नहीं मिले है. कुछ महिलाओं ने पूरा-पूरा महीना काम किया तो कुछ ने एक हफ्ता या बीस दिन. कुछ महिलाओं ने यह बताया कि उनके खाते में नहीं बल्कि पति के खाते में पैसे आया है जो उन्हें नहीं मिल रहा है. MGNREGA योजना काम के मांग या डिमांड की वजह से चलती है लेकिन इन औरतों का कहना है कि उनके गांव के प्रधान इनको काम मांगने पर भी काम नहीं दे रहे है.
इन महिलाओं में से कुछ बुजुर्ग है तो कुछ एकल औरतें है. MGNREGA के काम का पैसा न मिलने की वजह से इन महिलाओं को बहुत दिक्कत देखनी पड़ी है, एक महिला ने कहा कि घर को चलाने की दिक्कत तो सिर्फ औरत को ही पता होता है. कुछ ने कहा कि वो अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहे है. सिर्फ नमक-रोटी से अपना पेट भर रहे है. महिलाओं के नाम राशन कार्ड से बिना बताये काटे गए है. बड़े उम्र में भी ईंटा गारा क काम कर रहे है. जो योजना मजदूर वर्ग की जीवन रेखा है उसको सरकार ने हर तरफ से दबा दिया है. MGNREGA के सोशल ऑडिट रिपोर्ट को भी जनता के सामने नहीं लाया जा रहा है.